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The Truth about Farmers Protest : किसानों के विरोध का सच.

The Truth Of Farmer Protest

किसानों ने एक बार फिर आगये है सड़को पे आंदोलन करने और इस बार उनकी सबसे बढ़ी मांग है MSP याने न्यूनतम समर्थन मूल्य का वैधीकरण।

कई न्यूज़ एंकर यूट्यूबर्स और का दावा है की अगर सरकार ने डिमांड पूरी कर दी तो देश की इकॉनमी तभाह हो जाएँगी।

देश को 10 लाख करोड़ से ज्यादा का खर्चा उठाना पड़ेंगा।

क्या सचाई है इस बात की क्या किसानों की डिमांड सही है क्या गलत आइए जानते है।

क्या है एमआरपी MRP

MRP यानी अधिकतम क़ीमत है जिस पर चीजे बाजार में इसके ऊपर नहीं बैची जा सकती।

एमआरपी देश में उपभक्ताओं और आम जनता की सुरक्षा के लिए मौजूद है।

ताकि कोई कंपनी या दूकानदार हमारा शोषण ना कर सके।

अब एमआरपी MRP उलट है एमएसपी MSP

 

क्या है एमएसपी MSP याने न्यूनतम समर्थन मूल्य

MSP याने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कम से कम किसानो कों इतना दाम तो दिया ही जाएगा उनकी फसलों का।

ताकि कंपनी और मिडल मैन उन्हें उन्हें एक्सप्लोइड न कर सके अगर खरीदने वालों ने एक माफिया बना रखा है तो किसान २ रूपए किलो प्याज और 50 रूपए पर किलो गार्लिक बेचने पर मजबूर न हो।

कम से कम उसे एक मिनिमम प्राइस की गॅरंटी दी जाए एमआरपी की तरह एमसपी भी लॉजिकल चीज़ है इसलिए ज्यादातर पॉलिटिशियन हमेशा इसके फेवर में ही खड़े हुए है जैसे की बीजेपी लीडर नरेंद्र मोदी।

नरेंद्र मोदी : 2014 से पाहिले जानिए उन्होंने क्या कहाथा।

“मिनिमम सपोर्ट प्राइस हर किसान के लिए वो सरदर्द बना हुआ है और सरकार वो मंसूब करने का एक बहुत बड़ा तरीका बन गया है”.

एक राज्य में गेंहू का मिनिमम सपोर्ट प्राइस एक होगा बगल के राज्य में दूसरा होगा एक जगह पर चावल का एक रेट होगा दूसरी जगह दूसरा रेट होगा लेकिन सब जगह खरीदने वाली भारत सरकार।

लेकिन किसान सही दाम नहीं मिलते क्यों दाम तय करने की निति निर्धारित नहीं है।

नरेंद्र मोदीजीने अपने घोषणा पत्र में कहा है क्या “मिनिमम सपोर्ट प्राइस उसके लिए एक नियम तय होंगे उसके पैरामीटर तय होंगे उसके आधार पर तय होंगा”।

इसलिए “किसान को जो INPUT COST आता है पानी का खर्चा,मजदूरी का खर्चा,बिजली का खर्चा,बीज का खर्चा,खाद का खर्चा,दवाई का खर्चा,जितना भी उसकी लगत लगती है,उस लगत के ऊपर उसका 50 प्रतिशत प्रॉफिट लिया जाएगा, और उसको मिनिमम सपोर्ट से ख़रीदा जाएगा”।

भारत में एमसपी को इशू किया जाता है सीएसीपी के द्वारा यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट्स एंड प्राइस ये एक डिसेंट्रलाइएज एजेंसी है जिसे 1965 में एस्टेब्लिश किया गया था और आज के दिन मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर एंड फार्मर्स वेलफेयर के अंडर ये फंक्शन करती है।

सवाल ये है की एमएसपी की कॉस्ट कैसे डीसाइड करि जाये।

साल 2002 में कमिटी बानी गई थी हाई लेवल कमिटी ऑन लॉन्ग टर्म ग्रेन पालिसी जिसे हेड किया जा रहा था इकोनॉमिस्ट अभिजीत सैन के द्वारा।

इस कमिटी ने कहा की एमएसपी होनी चाहिए c2 कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन के बेसिस पर अब इसका क्या मतलब है यहाँ पर c2 समझने के लिए हमे a2 और FL कॉस्ट को समझना होंगा।

जानिए a2 कॉस्ट

a2 कॉस्ट यह वो कॉस्ट है जो किसानो को पाय करनी पड़ती है डायरेक्ट एक्सपेंसेस के तौर पर किसान जो सीड्स खरीदते है फर्टिलाइज़र्स खरीदते है पेस्टिसाइड्स खरीद ते है लबोर को हायर करते है अपनी फील्ड में काम करने के लिए फ्यूल का खर्चा जो आता है ये सब a2 कॉस्ट है।

जानिए FL कॉस्ट

FL कॉस्ट का फुल फॉर्म है फॅमिली लेबर ये वो कॉस्ट है जो एस्टिमुलते वैल्यू है अनपेड फॅमिली लेबर का मतलब एक किसान जब अपने खेत में काम करता है अक्सर उसके परिवार के लोग भी उसकी मदद करते है खेती करने में और क्योंकि उसके परिवार के लोग अपना समय लगा अगर उसके काम में हाथ बता रहे है तो उनकी लेबर की भी तो कॉस्ट होगी व् अपने समय में यह करने की जगह कोई और नौकरी भी कर सकते थे नौकरी की उस ऑपर्चुनिटी को उन्होंने मिस किया इस चीज़ को इकॉनमी में अक्सर ऑपर्चुनिटी कॉस्ट कहा जाता है तो यह हे FL कॉस्ट।

सीएसीपी आज के दिन एमएसपी डीसाइड करने के लिए a2+FL कस्को लेता है और उसका 1.5 तिमेसकार देता है इस तरीके से आज के दिन एमएसपी डीसाइड करि जाती है।

लेकिन अभिजीत सैन की कमेटी ने कहा था की हमे c2 कॉस्ट को कंसीडर काने चाहिए c2 का फुल फॉर्म कंप्रिहेंसिव कॉस्ट c2 कॉस्ट में हम न सिर्फ a2 और FL कॉस्ट लेंगे बल्कि हम ओनड कैपिटल और रेंटल वलुए ऑफ लें की कॉस्ट को भी कसदेर करेंगे।

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